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आरक्षण के दायरे से आखिर बाहर क्यों नहीं की जाती हैं संपन्न पिछड़ी जातियां?- सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने उठाया सवाल, जानें पूरा मामला

Supreme Court Justice on Reservation: आरक्षण के मामले पर सुप्रीम कोर्ट में फिर सुनवाई हुई है और इस बार अदालत राज्य सरकारों की ओर से कोटे में कोटा पर विचार कर रही है. मंगलवार (6 फरवरी, 2024) को सुप्रीम कोर्ट में 7 जजों की संविधान पीठ ने एससी एसटी वर्ग को मिलने वाले आरक्षण में अति दलित और पिछड़े यानी एससी एसटी वर्ग के ज्यादा जरूरतमंदों को आरक्षण देने और प्राथमिकता देने के मुद्दे पर मंथन शुरू किया.

टॉप कोर्ट ने इस दौरान महत्वपूर्ण टिप्पणी की और पूछा कि पिछड़ी जातियों में जो लोग संपन्न हैं, उन्हें आरक्षण के दायरे से बाहर क्यों नहीं किया जाता है? हालांकि, जज ने यह भी साफ किया कि यह कानून बनाने और इस पर फैसला लेने का काम केंद्र सरकार का है.

किस मामले पर हो रही है सुनवाई?
 क्या राज्य सरकार एससी-एसटी वर्ग में ज्यादा पिछड़ी, ज्यादा जरूरतमंद जातियों को आरक्षण का लाभ देने के लिए उप वर्गीकरण कर सकती है? इसी को लेकर पंजाब के एक मामले पर मंगलवार को सुनवाई के दौरान कोर्ट ने टिप्पणी में यह भी कहा कि यहां भी वही मानदंड नहीं लागू होना चाहिए जैसा कि पिछड़े बनाम फॉरवर्ड के बीच अपनाया जाता है. पिछड़ी जातियों को इसी आधार पर आरक्षण दिया जाता है कि वे संपन्न नहीं हैं.

इन जजों की पीठ में हो रही है सुनवाई
 सुप्रीम कोर्ट के सामने पंजाब का मामला है, जिसमें पंजाब सरकार 2006 में पंजाब अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग (सेवाओं में आरक्षण) कानून 2006 लायी थी. इस कानूनों में पंजाब में एसीसी वर्ग को मिलने वाले कुल आरक्षण में से पचास फीसद सीटें और पहली प्राथमिकता वाल्मीकि और मजहबियों (मजहबी सिख) के लिए तय कर दी गईं थीं. मामले पर सुनवाई के लिए प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में न्यायमूर्ति बीआर गवई, जस्टिस विक्रमनाथ, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी, जस्टिस पंकज मित्तल, जस्टिस मनोज मिश्रा, और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की सात सदस्यीय पीठ सनी कर रही है. बुधवार को भी मामले में बहस जारी है.

पिछड़ी जातियों के आरक्षण पर जस्टिस ने क्या कहा ?
सुनवाई के दौरान जस्टिस गवई ने अनुसूचित जातियों के उन्नत वर्गों के भीतर पीढ़ी दर पीढ़ी आरक्षण के लाभ को आगे बढ़ाने पर सवाल किया. उन्होंने कहा, “एक विशेष पिछड़े वर्ग के भीतर, कुछ जातियां उस स्थिति और शक्ति तक पहुंच गई हैं, तो उन्हें बाहर निकल जाना चाहिए, लेकिन यह केवल संसद को तय करना है. अब क्या होता है, एससी/एसटी का कोई व्यक्ति आईएएस/आईपीएस आदि में जाता है, एक बार जब आप इसमें शामिल हो जाते हैं, तो उनके बच्चों को वह नुकसान नहीं झेलना पड़ता जो अन्य एससी समुदायों के व्यक्तियों को भुगतना पड़ता है. लेकिन फिर, आरक्षण के आधार पर, वे दूसरी पीढ़ी और फिर तीसरी पीढ़ी के भी हकदार हैं.”

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